गजल-१८३
झलकी देखा पड़ा गेल ओ
चुपचापे ठाढ़ एकातमे
मुसकीमे हिय रिझा गेल ओ
ककरा कोना कहब हाल की
यमुनाकेँ जल सुखा गेल ओ
जखने किछो कहल नेहमे
छलिया जे छल बुझा गेल ओ
हियकेँ राजीव सुनलक कखन
करमक टा गुण बता गेल ओ
२२२ २१२ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र
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