गजल-१९१
बसंतक ई मौसमकेँ सभटा छी अजगुत
दिमागोकेँ रंगत आ ललसा छी अजगुत
दिमागोकेँ रंगत आ ललसा छी अजगुत
चलल बाटे घाटे आ सुख दुख देखौलक
बेसाहल ई जीवनकेँ जतरा छी अजगुत
बेसाहल ई जीवनकेँ जतरा छी अजगुत
अपन किछु बेगरते टा मोजर आ मसरफ
बड़ी मारूक औ ई गुन नबका छी अजगुत
बड़ी मारूक औ ई गुन नबका छी अजगुत
सबेरे जे कहलक छी संगेमे हमहूँ
तकर भरिदिनकेँ बाबू चरजा छी अजगुत
तकर भरिदिनकेँ बाबू चरजा छी अजगुत
बुझत नै ई गप क्यौ से देखल राजीवक
निरर्थककेँ अपनेमे रगड़ा छी अजगुत
निरर्थककेँ अपनेमे रगड़ा छी अजगुत
१२२ २२२२ २२२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment