गजल-१८६
जिनगीमे लोकक गजब खेल देखल
नेहोकेँ वासर अलग भेल देखल
नेहोकेँ वासर अलग भेल देखल
सॉरीकेँ मोजर क्षमाप्रार्थी सुनि
माथा औ बाबू सनकि गेल देखल
माथा औ बाबू सनकि गेल देखल
महिरम के बूझत हियक नेहकेँ किछु
पच्छिम नै पूरब कतहुँ मेल देखल
पच्छिम नै पूरब कतहुँ मेल देखल
डिबियो नै लेसल भरल साँझ तकरो
बोलीमे घीं आ गरम तेल देखल
बोलीमे घीं आ गरम तेल देखल
जइरे ने राजीव भेटल सिनेहक
सगरो धरि चतरल अमरबेल देखल
सगरो धरि चतरल अमरबेल देखल
२२२२२ १२ २१२२
@ राजीव रंजन मिश्र
@ राजीव रंजन मिश्र
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