भक्ति गजल - ८
हो ज्ञानक सतमे मान शारदे
चाही एक्के वरदान शारदे
चाही एक्के वरदान शारदे
नै पढि लिखि लोकक बुद्धि बज्र हो
राखू आबो ई ध्यान शारदे
राखू आबो ई ध्यान शारदे
हे धवला अभरन हंसवाहिनी
दी निश्छल निर्मल ज्ञान शारदे
दी निश्छल निर्मल ज्ञान शारदे
बुधि बड़ घुठ्ठीमे लोककेँ भरल
धरि सत झूठक नै भान शारदे
धरि सत झूठक नै भान शारदे
हे माए नव किछु आब होइ आ
चमकय शिक्षाकेँ चान शारदे
चमकय शिक्षाकेँ चान शारदे
हे वीणा करधारिनि सुनर वयन
घर घरमे सुधि बुधि आन शारदे
घर घरमे सुधि बुधि आन शारदे
बिनबी कर राजीव जोड़ि दुहि
हो मिथिला मंगलगान शारदे
हो मिथिला मंगलगान शारदे
222 2221 212
@ राजीव रंजन मिश्र
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