गजल-188
लोकक नै रहल कहियो किछुओ भरोसा
नै सभटा पुरल ककरो कखनो भरोसा
जे अछि आइ नहिँयो से भेटत सबेरे
कोना के करत कखनो ककरो भरोसा
कुकुरचालि अपने ई डाढल हियाकेँ
जे काबिल सिनेहक नै तकरो भरोसा
लूटल दाग वस्त्रों टा सभ लहासक
नै राखल ग' दइबोकेँ कनिको भरोसा
कोनो आइकेँ नै ई पुरना पिहानी
जे घनसार बनि छल उड़लो भरोसा
सम्हारू हियाकेँ यौ राजीव कहुना
भरमेलक सदति सभकेँ सगरो भरोसा
222 1222 22122
@ राजीव रंजन मिश्र
लोकक नै रहल कहियो किछुओ भरोसा
नै सभटा पुरल ककरो कखनो भरोसा
जे अछि आइ नहिँयो से भेटत सबेरे
कोना के करत कखनो ककरो भरोसा
कुकुरचालि अपने ई डाढल हियाकेँ
जे काबिल सिनेहक नै तकरो भरोसा
लूटल दाग वस्त्रों टा सभ लहासक
नै राखल ग' दइबोकेँ कनिको भरोसा
कोनो आइकेँ नै ई पुरना पिहानी
जे घनसार बनि छल उड़लो भरोसा
सम्हारू हियाकेँ यौ राजीव कहुना
भरमेलक सदति सभकेँ सगरो भरोसा
222 1222 22122
@ राजीव रंजन मिश्र
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