गजल-२३६
आ कि ठोकल उचित जबाब कि बूझल ककरो
बात बूझल भने हजार तँ हेतै सभकेँ
आगि पानिक मुदा बहाब कि बूझल ककरो
मोन मिलि गेल लोककेँ जँ तखन फेरो ओ
सर कहत आ कि यौ जनाब कि बूझल ककरो
चानकेँ कोन बड़ जरुरत छै ईजोरक
से तँ बिहुँसल कहत गुलाब कि बूझल ककरो
बड़ दिनक बाद आइ मोन ई राजीवक घुरि
फेर उनटल हियक किताब कि बूझल ककरो
२१२२ १२ १२११ २२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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