गजल-२३०
राम राजक जरूरत घर-घरमे
चलि रहल धरि सियासत घर-घरमे
के कहत के छी कम आ के बेसी
माल जालक हुकूमत घर-घरमे
लिपि तँ बिसरल बहुत पहिने यौ बाबू
मायक भाषा उपासत घर-घरमे
खोज गामक रहल नै ककरो धरि
जान चाही अमानत घर-घरमे
बानि राजीव मनुखक नै बदलल
नीक लोकक फजीहत घर-घरमे
२१२२ १२२ २२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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