नील गगन के क्या कहने,पहने तारों के गहने!
सूरज चमके मोती जैसा,और चंदा जैसे नीलम-पन्ने!!
हर सुबह बरे निराले मन से,करते सूरज का सत्कार!
बूंद-बूंद जल संचित करके,रखते इनको खुब सम्हाल!!
धरती जब तपती होती,जीवन होता जब बेहाल!
नील गगन के क्या कहने,कभी नहीं इतराते है!
बिना किसी चाहत के दिल में,सबकी प्यास बुझाते है!!
लेश मात्र भी गर्व नहीं है,नहीं इसे गरिमा का भान!
---राजीव रंजन मिश्रा
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