पलकें मूंदे लेटा था मैं,जाग उठा जो देखा सपना!
सपने में कोई एक मुसाफिर,आया था बनकर अपना!!
दूर देश का सफ़र सुहाना था ,उसको तय करना!
पल भर का जो साथ रहा,भूल गया मैं सारा गम अपना!!
ख्वाबों के उस छनिक समय में,पाया है जो सुख मैंने!
शायद ही मयस्सर हो मुझको,अब इस निष्ठुर जीवन में!!
No comments:
Post a Comment