देख लिया रोशन जंहा तेरा,
अब अँधेरे की जरुरत है!
तुफानो में बहुत खेया कश्ती को,
अब किनारे की जरुरत है!!
बेशुमार सितम सह लिया हमने,
अब तफरीह की जरुरत है!
बहुत पीये,आँखों ने गम के प्याले!
अब अश्कों की जरुरत है!!
नुकसान ही सहता रहा हूँ अबतक,
अब मुनाफे की जरुरत है!
बोझिल हो गया है 'मीत' ज़माने के गम से!
अब प्रयाण की जरुरत है!!
---राजीव रंजन मिश्रा
२२/६/1994
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