गजल-३०३
हुनक हँसनाइ जनि चूड़ी खनकि उठलै
कतहुँ खड़िहानमे कोयल कुहकि उठलै
कतहुँ खड़िहानमे कोयल कुहकि उठलै
हिया हरषल सुनल जे बोल ओ मिठगर
हुलासे मोन आ गत्तर फरकि उठलै
हुलासे मोन आ गत्तर फरकि उठलै
गठल काया कमल कचनाड़ सन तन्नुक
अंगैठी मोऱमे अंगिया मसकि उठलै
अंगैठी मोऱमे अंगिया मसकि उठलै
झलक बस एक टा ओ रूपकेँ पबिते
अमावस रातिमे चन्ना चमकि उठलै
अमावस रातिमे चन्ना चमकि उठलै
जही बाटे निकलि राजीव ओ गेलथि
सुवासे बाट ओ महमह गमकि उठलै
सुवासे बाट ओ महमह गमकि उठलै
1222 1222 1222
@ राजीव रंजन मिश्र
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