गजल-३०३
बरद छल तँ ह'र ने छल
मुदा किछु कुग'र ने छल
मुदा किछु कुग'र ने छल
बड़ी कष्ट रहितो धरि
मनुख भेल त'र ने छल
मनुख भेल त'र ने छल
उचित बात कहबामे
धरेबाक ड'र ने छल
धरेबाक ड'र ने छल
तते भाइचारा जे
झगरबाक ग'र ने छल
झगरबाक ग'र ने छल
मनुख छल मनुख सनकेँ
मनुखकेर झर ने छल
मनुखकेर झर ने छल
बिना दिव्य संस्कारक
तँ राजीव घ'र ने छल
तँ राजीव घ'र ने छल
१२२ १२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment