गजल-२९३
करबाक जे करिते रहब
सत बाट पर चलिते रहब
सत बाट पर चलिते रहब
काते दने भागु अहाँ
हम बीचमे अनिते रहब
हम बीचमे अनिते रहब
हम लोक ओ छी जे सखा
मुसकी सदति भरिते रहब
मुसकी सदति भरिते रहब
आँहाँ सुनी बा नै सुनी
धरि हम गजल कहिते रहब
धरि हम गजल कहिते रहब
देने रहू बस कान टा
हम सोन नित गढ़िते रहब
हम सोन नित गढ़िते रहब
मिथिला हमर पहिचान थिक
हम मैथिली बजिते रहब
हम मैथिली बजिते रहब
राजीव नै फटियैब धरि
अगरैलकेँ नथिते रहब
अगरैलकेँ नथिते रहब
2212 2212
© राजीव रंजन मिश्र
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