Sunday, April 7, 2013


एक टा आर धिया बलि चढली,जैतुकक आगि मे। हम एक टा गप सखा मंडलीस' कहय चाहब आइ,जे हमर उद्देश्य परस्थिति बा नीक बेजैक फैदा उठैब ने परंच हम जे क' सकैत छी से करबाक अछि।तहन हाँ रचनाक माध्यमस' किएकत' हमरा बूते ई बेसी नीक जकाँ हैत से हमर अपन विस्वास अछि ....बाँकी अपने लोकनिक हाथ मे। हमर विनम्र अनुरोध जे कटुत' लागत धरि मंसा बुझबाक प्रयास करब आ जौं हमर बात में किछुओ नीक लागैत' हम सभ किछु नब करी ...धन्यवाद सभगोटेक'...जयमिथिला ...जय  मैथिली ..जय भारत।। 

गजल-४६ 

सभ गाबैत रहब आ बजाबैत रहब 
मिथिला मैथिल के धरि घिनाबैत रहब 

चरचा छैक घरे-घर जनकललीक' मुदा 
आंगन घरकँ धिया नित जराबैत रहब 

आनब राज अपन आ महाराज बनब 
किरिया कैल अपन कत सधाबैत रहब 

औ सरकार कमी की बिधाताक' कहब 
सभटा दोष अपन धरि नुकाबैत रहब 

सगरो हाक लगा येह "राजीव" कहत
मानब नेत' अहाँ हम मनाबैत रहब  

 २२२१ १२२ १२२१ १२ 

@ राजीव रंजन मिश्र 

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