गजल-८८
पात पात झखऱि रहल अछि आइ देखू गाछसँ
दोग कोण मरल पड़ल नित गाछ खहरल आपसँ
दोग कोण मरल पड़ल नित गाछ खहरल आपसँ
बाट घाट मरल पऱल चहुँ कात देखब ताकि जँ
लोक बेद पुराण छोड़ल नेह तोड़ल गामसँ
लोक बेद पुराण छोड़ल नेह तोड़ल गामसँ
बोल चालि असन बसन चरजाकँ मटियामेट क'
हाब-भाब रहब सहब सभ बोरि लेलक मानसँ
हाब-भाब रहब सहब सभ बोरि लेलक मानसँ
सभ हिसाब किताब जिनगी केर भासल धार द'
नेह केर त' माप जोखक ढंग भेटत दामसँ
भोर साँझ कहा सुनी राजीव हारल कानि क'
के सुनत ग' जरब मरब नित मोन टूटल बातसँ
के सुनत ग' जरब मरब नित मोन टूटल बातसँ
2121 1212 221 22211
@ राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment