गजल-८२
भेटत नै किछु ठहरिकँ जिनगीक बाटमे
ताकब नै किछु लचरिकँ जिनगीक बाटमे
जीते बा हार हाथ खेलब जँ खेल ई
हासिल नै किछु खहरिकँ जिनगीक बाटमे
किछु चक्र थिक दैव केर जे डेग डेग पर
बाँचब टा नित रगऱिकँ जिनगीक बाटमे
बाँचब टा नित रगऱिकँ जिनगीक बाटमे
कानब सदिखन दहो बहो नीक गप्प नै
हारब नै हिय हदरिकँ जिनगीक बाटमे
हारब नै हिय हदरिकँ जिनगीक बाटमे
राखब "राजीव" सोझ मोनक विचार टा
चमकत चन्ना पसरिकँ जिनगीक बाटमे
चमकत चन्ना पसरिकँ जिनगीक बाटमे
2222 121 221 212
© राजीव रंजन मिश्र
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