बादलों के झूरमुठों में एक परी सी वो दिखी
आसमाँ के हर परत में एक कड़ी सी वो दिखी
होंठ उसके ज्यूँ कमल के पंखुरी खिलते हुए
नैन चंचल बैन निश्छल सहचरी सी वो दिखी
जब कभी वो हंस परे तो फूल सारे खिल उठे
शरमों हया से मुस्कुराती फुलझड़ी सी वो दिखी
उस अदा के क्या कहूँ जो बस सितम करते रहे
दिल तड़पता आहें भरता मद भरी सी वो दिखी
हमने ठुकरायी थी दुनियाँ उस बेवफा के प्यार में
मुझको करके बेमुरौव्वत चुप खड़ी सी वो दिखी
या खुदा वो इस कदर क्यूँ बेरहम दिल हो गये
मुझको "राजीव" यूँ मिटाकर खुद डरी सी वो दिखी
मुझको "राजीव" यूँ मिटाकर खुद डरी सी वो दिखी
राजीव रंजन मिश्र
मंगलवार 11/06/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है ....
धन्यवाद !!
बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteहार्दिक आभार आप सभी विज्ञ गुणीजनो का!!
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