मेरी छोटी बेटी विजयलक्ष्मी जो कक्षा ४ में पढ़ती है ९ साल की है,अक्सर मुझे कविताएँ लिखते देखती रहती है और आज अचानक से वो मेरे पास वो अपने द्वारा लिखी गयी चंद पंक्तियाँ लेकर आयी,जो मै आप सब मित्रों के साथ साझा करना चाहता हूँ....सुधि जनों कृपया उसे आशीष देकर मुझे अनुग्रहित करें :
जिवन
जब तक जिवन है
चलते ही रहना है
जब तक जिवन है
आगे ही बढ़ना है
जब तक जिवन है
हमें रुकना नहीं है
रुकना ही मर जाना है
रुकना ही डर जाना है
जब तक जिवन है
झूकना मना है
जब तक जिवन है
हमें चलते ही रहना है
विजयलक्ष्मी मिश्र
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