शब्द ही हर पीड़ हरते
शब्द ही निःशब्द करते
शब्द ही मारे मनुज को
शब्द ही तो प्राण भरते
शब्द गर समुचित रहे तो
रिश्ते सहज उड़ान भरते
शब्द ही निःशब्द करते
शब्द ही मारे मनुज को
शब्द ही तो प्राण भरते
शब्द गर समुचित रहे तो
रिश्ते सहज उड़ान भरते
शब्द से ही सम्बन्ध बनते
शब्द से ही जीवन हैं सजते
भावनाओं को कह बताते
वेदनाओं को भी हैं जताते
शब्द जब फिसले जुबाँ से
अनर्थ तब घनघोर मचते
शब्द से ही जीवन हैं सजते
भावनाओं को कह बताते
वेदनाओं को भी हैं जताते
शब्द जब फिसले जुबाँ से
अनर्थ तब घनघोर मचते
शब्द ही कारण दुखों का
शब्द से ही कहर बरपते
शब्द ही रस घोलते नित
शब्द से पत्थर पिघलते
शब्दों का बस खेल सारा
शब्द ही सुख संसार रचते
शब्द से ही कहर बरपते
शब्द ही रस घोलते नित
शब्द से पत्थर पिघलते
शब्दों का बस खेल सारा
शब्द ही सुख संसार रचते
शब्द वीरों के हुँकार भरते
शब्द के हारे कायर कहड़ते
शब्दों को रख सदैव समुचित
मन कभी ना करके उद्वेलित
शब्दों का लेकर वो सहारा
हैं नित नये आयाम चढ़ते
शब्द के हारे कायर कहड़ते
शब्दों को रख सदैव समुचित
मन कभी ना करके उद्वेलित
शब्दों का लेकर वो सहारा
हैं नित नये आयाम चढ़ते
शब्दों में अगर संवेदना हो
मनुष्यता की गर वंदना हो
फिर तो रहे कोई द्वन्द कैसा
किस हेतु हम कोई कष्ट सहते
शब्दों को नित रख नियंत्रित
सुख-शांति के झूले में पलते
मनुष्यता की गर वंदना हो
फिर तो रहे कोई द्वन्द कैसा
किस हेतु हम कोई कष्ट सहते
शब्दों को नित रख नियंत्रित
सुख-शांति के झूले में पलते
राजीव रंजन मिश्र
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