मै चला जा रहा था कही,अपने ही राह पर !
जाने कब और कैसे वो, हमसफ़र बन गये !!
हम चलते रहे जिद पर बस यूँ ही रात-दिन!
राहे गुलशन में, वो एक गुलमोहर बन गये!!
जिंदगी कटती रही,लम्बी सफ़र की तरह!
राह में वो मगर मील के पत्थर बन गये!!
हमने ख्वाहिश ना जाहिर किया था कभी!
बाखूब इल्म रहते भी वो बेखबर बन गये!!
याद आये कभी जो लम्हात बीते दिनो के!
गमगीन अपने शाम-ओ-सहर बन गये!!
राजीव रंजन मिश्र
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