गर्भहिं सँ हुनका में,नेह लगौने रहय छथि!
हुनक आबय के आस में,नैन बिछौने रहय छथि!!
जिन्नगी के हरेक क्षण,हुनका पर लुटौने रहय छथि!
सब मधुर-स्वप्न अप्पन,हुनके पर सजौने रहय छथि!!
बस अही आस में,जे जखन ओ जवान होयता!
त किछु करता हमरा लेल आ हमर ख़ास होयता!!
मुदा,जखन जवान भ,किछु करवाक बारी अवय छन्हि!
त बड्ड निर्मोही भ,मुंह फेरि,कनियाँक संग लई छथि!!
सब रुपे स्वार्थ में डुबि,अप्पन मज़बूरी जताबय छथि!
बाल-बच्चाक प्रति अप्पन जिम्मेदारी बताबय छथि !!
सब चीजक बाँट-बखड़ा क,अप्पन हिस्सा मांगैत रहय छथि!
पर त्रासदी त देखू समाजक,'बेटे' टा तैय्यो अप्पन कहाय छथि!!
आ दोसर दिश,जहिया सँ ओ मायक गर्भ में ऐलथि!
जानति बा अनजानति,बस आनहि टा कहैलथि!!
चीज़ त छोडु आशिर्वादहूँ टा,बँटति-बँटाईत सब में!
बाँचले-खूचल टा हरदम,अपना हिस्सा में पैलथि !!
सब तरहें संयमित जीवन के जीवति,जखन ओ जवान भैलथि!
त बड्ड शान-शौकत सँ,कोनो अन्चिन्हारक सुपुर्द कैल गैलथि!!
अहि तरहे,सब रुपे जीवन के जीवति, जखन भी मौका पड़य छन्हि!
त एक नइ दु-दु गोट माय-बापक प्रति,अप्पन फ़र्ज़ निभाबय छथि !!
मुदा,हाय रे ई दुनिया आ समाज!
'बेटी' तैय्यो आने टा कहाबय छथि!!
--राजीव रंजन मिश्र
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