Monday, October 27, 2014

गजल-३५० 

यौ नेह जहि ठाँ जकरा भेल
दुक्खक पसाही अखरा भेल 

डाकक कहल जैं बिसरा गेल
नेहक शुरू तैं खतरा भेल 

नै कहि कते छी ककरा नेह
धरि नेह मूँहक फकरा भेल 

खुरचालि टाकेँ चलिते आइ 
ई नेह टुकड़ा टुकड़ा भेल 

राजीव नै बुझनुक ओ लोक
जै नेह खातिर लबड़ा भेल 

२२१२ २ २२२१
@ राजीव रंजन मिश्र 

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