Wednesday, October 8, 2014

गजल-३२६ 

जी रहल संसारमे से कसर सदिखन रहत 
हम रही वा नै रही गप हमर सदिखन रहत 

फूसिकेँ ढाठी कहू कोन छल काजक ककर 
सत्तकेँ हथियार धरि कारगर सदिखन रहत 

हाथ आ नै पैर तै बातकेँ चरचा कथी 
झूठकेँ फफियैब आ धर पकड़ सदिखन रहत 

बातकेँ बेसी बढ़ा होइ कोनो लाभ नै  
बेस जे तीरत तँ से दर-ब-दर सदिखन रहत 

यैह छी राजीव सत मानि ली बिनु तर्ककेँ 
नाप आ गजलक विधामे बहर सदिखन रहत 

२१२ २२१२ २१२ २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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