Monday, October 27, 2014

गजल - ३४३

जिद अपन तँ ई रहै
आचरण सही रहै

बाजि लै हजार ओ
धरि अपन गली रहै

बुद्धि आ विवेककेँ
मेल सदिघङी रहै

आर होइ जे मुदा
दूर तनतनी रहै

राजिवक नजरि अलग
संग सरस्वती रहै

२१२ १२१२
®राजीव रंजन मिश्र

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