गजल - ३४३
जिद अपन तँ ई रहै
आचरण सही रहै
आचरण सही रहै
बाजि लै हजार ओ
धरि अपन गली रहै
धरि अपन गली रहै
बुद्धि आ विवेककेँ
मेल सदिघङी रहै
मेल सदिघङी रहै
आर होइ जे मुदा
दूर तनतनी रहै
दूर तनतनी रहै
राजिवक नजरि अलग
संग सरस्वती रहै
संग सरस्वती रहै
२१२ १२१२
®राजीव रंजन मिश्र
®राजीव रंजन मिश्र
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