गजल-३४०
अपने उकटा-पाँचिमे पड़ल-हुकरि रहल-जग धीरे धीरे
खन्नहि चाहिरल लोक चान पर खने उतरि धरनी पर उनटल
अजगुत चरजा देखि क्षोभमे पजरि रहल जग धीरे धीरे
आशीषे टा पाबि ठाढ़ छल उनटि कँ देखू अगिला पछिला
तकरे खोंहिस छोड़ि देल आ नमरि रहल जग धीरे धीरे
भाभट देखू कोन धैल जे धधा रहल युग धरि परतारल
मायक हिय सन बात बातमे सिहरि रहल जग धीरे धीरे
राजीवक छी साफ एक गप सदति सुपत करनीकेँ चलिते
ककरो टा क्यउ नाम लेल आ सुमरि रहल जग धीरे धीरे
२२२२ २१२१२ १२१२२ २२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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