गजल-३२७
सत गप्प मानि ली आबहुँ हे भाइ
नै होउ पातकी आबहुँ हे भाइ
नै होउ पातकी आबहुँ हे भाइ
हे आँखि कानकेँ राखू नै मूनि
नै भेल देर छी आबहुँ हे भाइ
नै भेल देर छी आबहुँ हे भाइ
धरनी तँ छोट छिन बामनकेँ डेग
चाही गवाह की आबहुँ हे भाइ
चाही गवाह की आबहुँ हे भाइ
भगवान ओकरा बेटे देथुन्ह
कहनाइ छोरि दी आबहुँ हे भाइ
कहनाइ छोरि दी आबहुँ हे भाइ
राजीव मोन जे कहलक छी नीक
से काज चट करी आबहुँ हे भाइ
से काज चट करी आबहुँ हे भाइ
२२१ २१२ २२२ २१
©राजीव रंजन मिश्र
©राजीव रंजन मिश्र
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