गजल-७१
लोक बाजल रहल निभाबए सँ
बानि हिस्सक रहल हटाबए सँ
चारि आखर बचल दबा कँ मोन
नीक लागल त' गुन गुनाबए सँ
लरि रहल छी गलत सही क' लेल
चाह पूरत कि ढनमनाबए सँ
चान सूरुज जकर गवाह भेल
लाभ कोनो कि सत दबाबए सँ
फारि "राजीव" की करब करेज
दुख घटत नित हँसब हँसाबए सँ
२१२२ १२१२ १२१
@ राजीव रंजन मिश्र
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