Friday, February 15, 2013

         मूलमन्त्र

कानि रहल अछि दहो-बहो
धरतीक सबसँ पैघ जनतंत्र
जन-गन आतुर भेल सगरो 
लचरि गेल अछि यौ गणतंत्र
आउ गढ़ी हम नवल विधान 
उन्नति होइ जकर मूलमन्त्र !

विधि विधान केर उचित मेल 
संविधान जे छल अतुलनीय 
बदलल युग केर परिपाटी मे 
बेबस पड़ल भ' घोर सोचनीय 
संविधान होइक़ संशोधित आ 
ख़तम होइ राजनीतिक कुतंत्र !
आउ गढ़ी हम ..............

ने बिन बातक हम राड़ करी 
ने दूरि करी अपन संसाधन
गात,मोन आर प्राण लगाकँ
सदति करी कर्तव्यक पालन
चलू रचब हम नब भारत ओ 
जतह गाम गाम लागै संयन्त्र !
आउ गढ़ी हम ..............

ओ संविधान जे भूख मिटाबय 
ऊँच-नीच केर गीत ने गाबय 
बाल-बृद्ध चहुँ कात हँसैत होय 
नारि -पुरुष समतुल्य बनाबय 
ने जाति-पातिकँ नामे जाहि मे
वोट-जोगाड़क चलय षड़यंत्र !
आउ गढ़ी हम ..............

छैक मांग प्रबल आइ समय के  
आबू किछु बदली हम अपनाकँ 
सोन चिरै हम बनी फेर विश्व मे 
सह्जोरि नियारि पाबी सपनाकँ
तखने अपनाकँ सखा बंधु सब 
सरिपहुँ बूझब हम अहाँ स्वतंत्र !

आउ गढ़ी हम नवल विधान 
उन्नति होइ जकर मूलमन्त्र !

@ राजीव रंजन मिश्र     

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