Sunday, February 24, 2013

गजल ३२

जिनगी आइ कनेलक फेरसँ हमरा
भभकी मारि दुखेलक फेरसँ हमरा

जखने बीति चलै दिन ने किछु सुनलक
बिढ़नी काटि सतेलक फेरसँ हमरा

सभछै खेल कपारक मानल हमहूँ
बिधना नाच नचेलक फेरसँ हमरा

करनी मानि करय छी करतब हम धरि 
सभतरि लोक डरेलक फेरसँ हमरा

किछु "राजीव" जहन मोनसँ सोचल 
बुझना गेल झमेलक फेरसँ हमरा

मात्रा क्रम: 2221+1222+222

@ राजीव रंजन मिश्र

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