Friday, February 15, 2013

गजल-28

ने जानि केहन ई हवा चलल अछि             
आब लोक लोकसँ डेरा रहल अछि

किछु मोचंड छै लेने टेंगारी हाथ मे 
आ चारू दिस कोहराम मचल अछि

जकरासँ घर दालान ने सम्हरल 
पुरे महिकँ सरदार बनल अछि 

जीबैत किनको ने गुदानैत जे सभ 
मरिते तिनकर नोर झड़ल अछि 

भोरे अन्हरखे जौं हाल एहन फेर 
देखबाक चाही की सांझ कहल अछि 

ने कहि कोन बसात बहत कखन 
करनी देखू रंग ताल भरल अछि 

"राजीव" गरम छैक हवा बजारक 
नेता चमचा सगरो पसरल अछि 

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-14) 
@ राजीव रंजन मिश्र 



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