Wednesday, February 27, 2013

गजल-३३

बुझि पऱल जे धुआँ उठल अहिठाँ
सुझि रहल के घिना रहल अहिठाँ

सुनि सकल ने मधुर गीत कोनो
फुकि चलल जे नुका छिपल अहिठाँ

फ़ुसि भखय आ अपन भरय सदिखन
सुधि रहल ने लुटा मरल अहिठाँ

झुकि खसल ने नजरि मुनल कखनो
उठि चलल जे जुआ जितल अहिठाँ

खुलिकँ "राजीव"ई कहब हरदम
मुँह देखल आ हवा बहल अहिठाँ

२१२२ १२२  १२२
@ राजीव रंजन मिश्र


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