Friday, February 15, 2013

गजल-26 
दिन पलटतय एक दिन आँहा आस लगेने रहब
मोन जुरेतय विधना बस आँहा बाट सजेने रहब

टाका पैसा गहना गुङिया काज ने दए अहिंठाँ ककरो
बात विचार ब्यबहार आँहा बस नीक बनेने रहब


दुनिया कनय छैक सभतरि अपनहि खातिर ऐठाँ
लोकक नीक बेजाय मे आहाँ बस हाथ बटेने रहब


बड्ड काज करय छैक बुढ-पुरानक आशीष वचन
डेग डेग पर सभकँ आशिर्वाद संग समेने रहब


बहुत कठिन छैक आइ काल्हि चलब अहि महि पर
बुद्धि विचार  विवेक अपन सभ ठाम बचेने रहब


नांगरि झाङिक' चलब जगती पर चालि छी कुकुरकँ
टोल परोसक हक हिस्सा लेल  आबाज जगेने रहब


कैलहा सभटा बिसरत "राजीव" आहाँक लोक अपन
अप्पन आनक ने बोध राखि बस रंग जमेने रहब

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-21)
राजीव रंजन मिश्र 

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