Friday, February 15, 2013

गजल-25 
हे नारि! अहीं रणचंडी छी आर अहीं ममतामय छी
एना किया कातर बनिकँ टुकुर टुकुर ताकय छी 


छी अहींक बनाओल ई जगती आ जगती केर लोक
बिसरि अपन सभ रूप एना किया मुंह बाबय छी 


छी सदी एकीसम मे हम सब आर अहाँ छी बैसल
उठू जगाबूँ नब क्रान्ति कहबाक याह टा आशय छी


अछि मांग समयकँ उत्थान नारि केर चहुँतरफा
पढि लिखि दौगू अपना पैरे नहु नहु की धाबय छी


"राजीव" बेकल छथि देखै लेल अहाँकँ महि -मंडन
चिकरि -चिकरि हम सदति समाजकँ जगाबय छी  

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-20)
राजीव रंजन मिश्र 

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