Wednesday, February 13, 2013



फूलक रस पिययवाला,जखन काँटक गरब सहतै
तहन सूतल पङल मोनक,बैथा सभ हारिकँ कहतै
चलू सुनगा दी हम सभ कोणकँ,ललकारसँ अपन
धधरा जौं ने उठल तौं,कोना आगिक असर रहतै

सदति रहल छै जगती पर,अहीटा बात केर झगड़ा 
हमहीं पइघ आ तू छोट,देखाओत आँखि के हमरा
चलू हम छोऱिकँ ढाठी,सुनी सभ गप एक दोसरक 
फूलत ने मुहँ जौं किनको,तहन रहत कथिक रगड़ा

राखी हम अपन व्यवहारकँ,सुनय आ सुनाबय जोग
भौतिक तापसँ बचिकँ,रही हम चकचक दोगहिं-दोग
भोगैथ वीर धरनीकँ,रहै छैक नाम बस कर्मसँ सभके 
बनी हम वीर आ बुझनीक,बढाबी जोग,जप,तप,भोग

ख़त्म करी आब नाचब गैब,फुसियाहींक नोचब मुँह 
आनी जानी किछु ने जाहिसँ,गैले गीत ने गाबी हम
मोनक साती नाद करैत अछि,नब करी किछुतौं नब 
मिटा धराकँ घोर अन्हरिया,सगरो इजोत फैलाबी हम 

राखब बोध कर्तव्यक,जौं सदिखण मोन-दिमाग मे
करी बस बात टा ने अधिकार के,घर आ समाज मे
पहुँचल चान पर दुनिया,नियार भाष बुद्धि विचारसँ
राखब बानि सुन्नरतौं,रहत कि भांगट राम-राज मे

@ राजीव रंजन मिश्र

फूलों के रस पीनेवाले,जब काँटों का चुभना झेलेंगे 
सोये मन के पीड़ तभी,थक हार व्यथा सारा बोलेंगे 
चलो सुलगा दें सभी दिशायें,हम ललकार से अपने 
धधक उठे न ज्वाला तो फिर असर आग क्या छोड़ेंगे 

सदा रहा है इस जग में,झगड़ा बस इस बात की 
हम बड़े और तुम छोटे,है भान तुम्हें औकात की?
रवैय्या छोड़कर यह हम,सुने एक दुसरे की बात
रहे फिर,रगड़ा भला किस बात की  


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