गजल-३२८
जीवन बीत जाय धरि ठाम नै भेटै
ऐ ठाँ लोककेँ उचित दाम नै भेटै
ऐ ठाँ लोककेँ उचित दाम नै भेटै
सभदिन केर नीक बोली विचारक जे
ढंगक ओकरो तँ ईनाम नै भेटै
ढंगक ओकरो तँ ईनाम नै भेटै
लाखे कैल गेल चेष्टा मुदा तैय्यो
लोकक मोन बीत भरि बाम नै भेटै
लोकक मोन बीत भरि बाम नै भेटै
मंदिर केर जोह आ चाह मस्जीदकेँ
कत्तहु धरि रहीम आ राम नै भेटै
कत्तहु धरि रहीम आ राम नै भेटै
छै राजीव बेश अजगुत हुनक लीला
समुचित ग्यान टा सरेआम नै भेटै
समुचित ग्यान टा सरेआम नै भेटै
22 2121 221 222
©राजीव रंजन मिश्र
©राजीव रंजन मिश्र
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