Sunday, December 30, 2012

कर दूर हृदय में छाये गम  को नूतन इतिहास रचाओ बेटी
हम आज खड़े है साथ तुम्हारे तम को उठ दूर भगाओ बेटी

वो चली गयी,होकर प्रताड़ित कुछ कलुषित निर्मम हाथों से
तुम सोच सचेतन निर्मल मन से हर एक कदम बढाओ बेटी

एक शपथ उठाओ अन्तर्मन में,करो आप को आंदोलित तुम 
बन दृढ प्रतिज्ञ व्यवहार कुशल जनमानस में छा जाओ बेटी

हैं पुरुष मात्र ही नहीं लुटेरे नारी के अस्मत और लज्जा की
जड़ चेतन से भरा जगत है,परख सको वह दृष्टि जगाओ बेटी

शर्मिंदा है हर चेतन मन,है झुका शीश बाप,भाई और बेटे का
हो सके अगर तो हे ममतामय !अब और हमें न लजाओ बेटी

पर ध्यान रहे हे सृजन कारिणी! निष्फल ना हो यह बलिदान
"दामिनी"बनकर अब नरदानव पर उचित कहर बरपाओ बेटी

है नारि जगत की अनुपम रचना,नारि नहीं तो फिर श्रृष्टि कहाँ
निज भृकुटि तान कड़े शब्दों में समुचित प्रतिकार जताओ बेटी

है सुनी पुरानी बात यही,अधिकार दी नहीं छीन ली जाती है 
निज बुद्धि विचार और कर्मों से अब विजय पुरुष पर पाओ बेटी  

छोड़ो सुनते रहने की आदत,निज बातों को तुम कहना सीखो
"राजीव" असाध्य व मर्यादित रह,हर पल झंडे फहराओ बेटी 

राजीव रंजन मिश्र 






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