Sunday, December 9, 2012


गजल ३२ 
टूटल अछि करेजक बल सम्हारब आब कोना हम
फेटल अछि सिनेहक छल निमाहब आब कोना हम 

सोचल छल बड्ड किछु बात मोनहि गोए राखल सभ
देखल सभ सपनाक क्षण जोगारब आब कोना हम 

थम्हल जहन पवन कर तेज विर्रो तहन बुझलौं
भरल सभतरि छल्ह गर्दा बहारब आब कोना हम 

छलौं हम आसमँ सदिखन हवाक कोण बदलत यौ
लागल आगि सघन सगरो मिझायब आब कोना हम 

बैसल आब सबहक सुनि रहत चुप नै "राजीव"
मारल मोन कचोटक पल गुजारब आब कोना हम

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-२१)
राजीव रंजन मिश्र 

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