Sunday, December 9, 2012


गजल ३० 

सभ किछु सोचि हारल छी 
अपने मोनक  डाहल  छी

बड्ड देखल लोकक बानि
हियाउ छोरिक भासल छी

जूरा सभकँ चलल हम 
मुदा करेजक मारल छी 

दैव घर ने अन्हेर छैक
याह टा भरोस राखल छी 

रौदी धाही ने सभ दिनका 
कष्टक दिनत' गानल छी 

सुख-दुःख छांह रौद जकां   
सुधि लोकनिक भाखल छी 

"राजीव"अछि संतोष राखि 
तैं यौ सरकार बाँचल छी  

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१०)

राजीव रंजन मिश्र 

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