Sunday, December 9, 2012


गजल २४  


जौं कष्ट भरल ई पीर फारि सकल ने छातीकँ
औकाते फेर कि छैक दू चारि अक्षरक पातीकँ

पढि लिखि जौ मिटा सकल ने अज्ञानक अन्हार 
की मतलब छै तहन सभ दिन दिया बातीकँ

सभ कहैथि आ सुनैथि बस आदर्शक बाते टा
कर्म कए ने मिटा सकल क्यौ करेजक सातीकँ

बैस मंच पर सभ करय जैतुकक विरोध
तानि छाती ल दहेज़ नियार करै बरियातीकँ

मत सुन्न समाज सभ तरहे भेल छै आजुक  
कहै ने एक्कहुं आखर क्यउ केहनो आघातीकँ

आब बूढ पुरान कँ किएक गुदानैथ किन्नहुं
सगरो छै आइ राज बनल नबका उत्पातीकँ

"राजीव" छगुन्ते ताकि रहल सभ कृत्य हिनक
आस लगौने अंत लगचियाल छी खुराफातीकँ

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण -१८) 
राजीव रंजन मिश्र      
        

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