Sunday, December 9, 2012


गजल ३३ 

आँखिक पिपनी झुकल सन
गालक लालिम रंगल सन 

स्नेह पर ककरो ने चलल 
मोन लगै अछि बेकल सन 

झुकल नैन उठैब हूनक 
तीर चलाबै मारल सन 

हिरनी सनकँ चालि चलैथ 
आँखि रहै छैक फारल सन 

केश हुनक डाँर तक झूलै
बुझाय मोन छै बान्हल सन 

देखि हूनक लटक झटक 
साधु संत सब डोलल सन

"राजीव"हमहूँ छी मनुख यौ 
कखनो क' छी बहकल सन  

(सरल वार्णिक बहर.वर्ण-११)

राजीव रंजन मिश्र 

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