Sunday, December 9, 2012


गजल-२२

सुरूजक लाली आबि रहल अछि
भोरका उखरा गाबि रहल अछि 

जगती सूतल निचैन राति भरि 
प्रकृति सौरभ लाबि रहल अछि 

बौरल  मोनक किछुए लोक सभ
राति राति मुँह बाबि रहल अछि

सूतल काबिल जागल बूरिबक
नै जानि भला कि पाबि रहल अछि

जत्तहिं जकरा जे हाथ लगे छैक
हाथे पैरे सभ दाबि रहल अछि

लोक अनेरो सहकल चहुँ दिसि
काबिलक मुँह जाबि रहल अछि 

"राजीव" बेकल छी मारल सोचक 
जग किम्हर जे धाबि रहल अछि

(सरल वर्णिक बहर,वर्ण-१३)
राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment