Sunday, December 9, 2012


माय जौं घर सम्हारैथ त' बाबू बिचला खाम छैथ
धिया पुताकँ बनबै लेल साम दंड आ दाम छैथ

सहि कए सभटा अपना पर सभ हाही विरबा
बाल बच्चाकँ लेल बहबैत अपन ओ घाम छैथ

उप्पर मोने सक्कत बनि रहथि मोन मारि कए
मुदा कनिको कष्ट देखिते ठाढ ओ सभ ठाम छैथ

माय बाबूक कहल ने मानल जौं सखा संतान त'
बुझि राखैथ  निश्चित्ते सभ रूपे विधना बाम छैथ 

"राजीव" देखल बाबूकँ आ बाबू बनि बूझैथ आब 
बाबू हैब कठिन छी ई ने बस एकटा नाम छैथ 
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१९)
राजीव रंजन मिश्र 

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