Sunday, November 25, 2012


गजल १६ 

खिलैत फूल के ने तोड़ल करु 
फूल के एना ने मचोरल करु 

चान तारा पाबय क लोभे अहाँ 
घरक चार क'  ने फ़ोड़ल करु  

देह झूलसि जाएत यौ समुच्चा 
तांतल मोन क' ने कोरल करु 

झूठ सच्चक छैक बोध जकरा 
तै ऐना सँ मुहँ ने मोड़ल करु  

मोन ठंढा करै जे शुद्ध विचार 
सै  चानन सँ नेह जोरल करु

गलत कए सह ने दी कखनो 
दोषी क सभ झकझोरल करु

बुझबा जौं आबै खराब "राजीव"
ठामे ठाम ओकरा छोड़ल करु 

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१२) 

राजीव रंजन मिश्र 

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