Saturday, November 17, 2012


             गजल (५)
कष्ट जखन दुस्सवार होइत छैक
मोन तखने तार तार होइत छैक

अहाँ देखने होयब भोरक पहिने
घनघोर कुप्प अन्हार होइत छैक 

आजुक समय बड्ड बदलि गेल छै 
मुफ्ते ने किछु सरकार होइत छैक

आइनों बिहूँसि सत्कार करै तखने 
रूप जखन होशियार होइत छैक

प्रेम आ स्नेह कि जानै गेल आब लोक
जीवन में कि बारम्बार होइत छैक

कहै राजीव कष्ट त दुःख ला ने थिक 
साती मोनक ने सम्हार होइत छैक

(सरल वार्णिक वर्ण-१४)
राजीव रंजन मिश्र 

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