Saturday, November 17, 2012


नाला 

नाला नाम छी 
घृणित संबोधन 
रद्दी फेकैथ 
हम बहा ल जाय
लोकक जीवन सँ !!

सगरे गांव 
घरे-घरे होइत 
समटईत
सबहक घरक  
उत्सर्जल विकृति !!

जरुरी थिक 
हमर रहनाई
तैय्यो लरैथ
जग्गह कपछैत
सगरो घिनबैथ !!

जौ बिलमलौं
कखनो कत्तहूँ त 
घिना जायत 
पूरा वातावरण 
नाक मुनि रहब !!

तात्पर्य याह 
जे आदर्श ओ थिक 
जे भागय नै 
खराबो के बहा क 
करय उपकृत !!

राजीब रंजन मिश्र
१०.०७.२०१२

No comments:

Post a Comment