Sunday, November 25, 2012


गजल -१७  

बिगड़ल छै एहन कपार नोर कए
तोड़ने नहिं टूटल देबार नोर कए   

सए चेहरा निर्दोषक देखै क भेटत
सुनि कए देखब जौं विचार नोर कए 

लोकक सक्कत मोन किएक ने पिघलै
पाथरो क काटैत छैक धार नोर कए 

मुस्कीक गामे बसोबास छैक जिनकर 
ओ किएक बुझि पैता गोहार नोर कए 

रहितो अन्हार सभके चीन्ह गेल हम
सिखैल पाठ नै भेल बेकार नोर कए  

मोने जिनक छन्हि भेद भाब स भरल 
कहियो कि कए पैता सत्कार नोर कए 

"राजीव" सभक्यौ लूटय मजा गरीबक 
किनको बुत्ते ने भेल सम्हार नोर कए 

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१५)

राजीव रंजन मिश्र 

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