हर एक क्षण उसी का,
सपना संजोये होते है!
हर एक पल को अपने,
उन पर लुटाये होते हैं!
दिल में एक झूठी आस लिये,
कि जब वो जवान होंगे!
रखेंगे ख्याल हमारा,
और हमारे खास होंगे!
पर,जब वो जवान होते है,
और कुछ करने की बारी आती हैi
तो बरी बेरुखी से मुंह मोड़कर,
औरों का दामन थाम लेते है!
हर वक़्त स्वार्थ में डुबे,
अपनी मजबूरी जताते है !
पर त्रासदी तो देखो इस जहाँ की,
'बेटा' ही अपना कहलाते है!
और दूसरी तरफ,
जब से वो कोख में आयी!
जाने या अनजाने ,
बस गैर ही कहलायी!
हर चीज और दुआं भी,
बंटते-बँटाते सब में!
बची-खुँची ही,
उसके हिस्से में आयी!
यूँ हर तरह से,
संयमित जीवन को जीते हुए!
जब जवानी की,
दहलीज़ पर आती है!
तो बड़े शान-शौकत से,
किसी अनजाने को,
सौंप दी जाती है!
इन सब के बावजूद,
हर परिस्थिति में ढलते हुए,
जब भी मौका आता है,
तो एक नहीं ,
दो-दो माँ-बाप के प्रति,
अपना फ़र्ज़ निभाती है!
पर,हाय रे ये दुनिया,
'बेटी' फिर भी,
परायी ही कहलाती है!
---राजीव रंजन मिश्र
१६/११/२०११
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