जहाँ भी देखा,जिसे भी देखा,
अपने ही गम से त्रस्त देखा!
फिर भी न जाने क्युं हर एक को,
अपने ही दुनियाँ मे व्यस्त देखा!!
न जाने,वो कौन सी डोर है,
जिस मे बंध कर सभी को मस्त देखा!
खुद हंसने और गैरों को रुलाने में,
हर-एक शक्स को सिधहस्त देखा!!
जो कभी खुशियाँ बाँटने कि नौबत सी आई,
सभी के हौसले पस्त देखा!
न जाने ईश्वर तुने कैसी दुनियां बनायीं,
कि सभी क़ी हालत खस्त देखा!!
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