Wednesday, July 2, 2014

गजल-266

काया टाकेँ मेल नै
दू आत्माकेँ खेल नै

शाश्वत थिक ई नेह यौ
कहि देने टा भेल नै

के छूटल तिहुँ लोकमे
जे ई बाटे गेल नै

सभ तरहक ऐ ठाम सुख
धरि बेकारक लेल नै

काबिल जे राजीव से
बुझलक भाँटा बेल नै

2222 212
© राजीव रंजन मिश्र

No comments:

Post a Comment