Monday, July 21, 2014

गजल-२८१ 

धरनीकँ छोड़ि दुनियाँ असमान ताकि रहलै
बुरिबक जकाँ सगर सभ नित चान ताकि रहलै

माए खुआ चलल सोहारी अपन मुहँक धरि
धी पुत बिसरिकँ माँकेँ भगवान ताकि रहलै

नै दान देल कहियो कैलक धरम करम नै
सुख चैनकेँ मुदा सभ करमान ताकि रहलै

देखल अही जगतमे जे दागि देल सभकेँ
से आइ आप खातिर अहसान ताकि रहलै

दर दर भटकि रहल छै सतकेर टोहमे सभ
राजीव भेल सत बड़ झुझुआन ताकि रहलै

2212 122 221 2122
@ राजीव रंजन मिश्र 

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